
पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बाराबंकी ने रचा नया रिकॉर्ड मियावाकी पद्धति से रोपे गए 2 लाख 65 हज़ार पौधे
रिपोर्ट- ब्यूरो चीफ मोहम्मद सद्दाम
बाराबंकी। पर्यावरण संरक्षण को जन-आंदोलन बनाने की दिशा में जनपद ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। जिलाधिकारी शशांक त्रिपाठी के नेतृत्व में जिले की समस्त ग्राम पंचायतों में 25 जुलाई को मियावाकी पद्धति से सघन वृक्षारोपण अभियान चलाया गया। जिसके लक्ष्य दो लाख 65 हजार को गुरुवार की देर शाम तक जिले की 1150 ग्राम पंचायतों में पूरा कर लिया गया। जिनमें हरिशंकरी बरगद, पीपल, पाकड़ के औषधीय और पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण पौधे प्रमुख रहे अभियान की शुरुआत ब्लॉक बंकी के वृहद गौ संरक्षण केंद्र निबलेट मोहिद्दीनपुर से हुई, जहां जिलाधिकारी शशांक त्रिपाठी एवं पुलिस अधीक्षक अर्पित विजयवर्गीय ने हरिशंकरी के 5 पौधे एवं अन्य 232 पौधे मियावाकी तकनीक से रोपे। इस दौरान दोनों अधिकारियों ने गौवंशों को गुड़ व केला खिलाकर संरक्षण भावना को भी प्रकट किया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जिलाधिकारी ने कहा, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी जा रही है। मियावाकी पद्धति से रोपे गए पौधे न सिर्फ 24 घंटे ऑक्सीजन देंगे, बल्कि मिट्टी के कटाव को रोकने में भी सहायक होंगे। उन्होंने महिला समूहों को सहजन और लाल चंदन के पौधे भेंट करते हुए कहा कि, जिस प्रकार मां अपने बच्चों को सहेजती है, उसी तरह इन पौधों की देखभाल की जिम्मेदारी भी हम सबकी है
विकासखंड फतेहपुर में 23000 पौधों का रोपण उनकी सुरक्षा के दृष्टिगत तार फेंसिंग करते हुए प्रत्येक ग्राम पंचायत में हरिशंकरी पौधों का रोपण किया गया। इसी क्रम में विकासखंड सूरतगंज में 27,160 पौधे रोपे गए, जिनकी सुरक्षा के लिए तार फेंसिंग, मनरेगा से खाद-पानी और मास्टर रोल की व्यवस्था की गई। इसी तरह त्रिवेदीगंज ब्लॉक की समस्त ग्राम पंचायतों में 18,000 पौधे हरिशंकरी व मियावाकी पद्धति से लगाए गए। वहीं ब्लॉक सिद्धौर में 2,5000 पौधे लगाए गए। अभियान में महिला स्वयं सहायता समूहों ने अहम भूमिका निभाई। सखी समूह और भारत महिला समूह की महिलाओं ने न केवल पौधारोपण किया, बल्कि उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी निभाई। प्रशासनिक अधिकारियों का पारंपरिक स्वागत करते हुए उन्होंने पर्यावरण संरक्षण की शपथ भी ली। यह हरियाली महाअभियान एक संदेश है कि जब प्रशासनिक नेतृत्व, जनसहभागिता और स्थायी सोच एकजुट होती है, तो पर्यावरण संरक्षण सिर्फ एक अभियान नहीं बल्कि एक संस्कृति बन जाती है। ये पौधे आने वाली पीढ़ियों के लिए साफ हवा, हरियाली और जीवन का भरोसा बनेंगे।
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