
अजब कटनी की गजब कहानी
जिला कलेक्ट्रेट निर्वाचन शाखा की मनमानी
कटनी - सूत्रों से मिली जानकारी के अंतर्गत 15 साल से चीफ रिटर्निंग अधिकारी के आदेश कटनी कलेक्ट्रेट निर्वाचन शाखा कभी नहीं मानता सुमित सिंह भी दस वर्षों से निर्वाचन शाखा की अनिवार्य पोस्टिंग पर है, कटनी जिले में दो क्लर्कों के बिना कोई भी चुनाव संपादित नहीं कराया जा सकता, इसलिए सन 2008 से माखन बाबू और सन 2013 से सुमित (सिंह) बाबू को गैरकानूनी ढंग से जिला निर्वाचन कलेक्ट्रेट शाखा में पदस्थ रखना मुख्य चुनाव अधिकारी (मप्र) और भारतीय चुनाव आयोग दोनों की लाचारी बन गई है।कहने के लिए माखन-सुमित की जोड़ी क्लर्क की है लेकिन चुनाव के समस्त बजट को किस तरह किनके हाथों से खर्च करवाना है, इसका काम ये दोनों संभालते हैं, कलेक्टर बनाम जिला निर्वाचन अधिकारी को गुमराह (गाइडेंस) करते हैं। वर्ष 2023 को फैक्स से निर्देश पत्र क्रमांक 04/01/स्थापना/2023/4985 को पूरी तरह दबाकर रखा गया जिसमें जिले में 3 वर्ष से लगातार पदस्थ कर्मचारी को स्थानांतरित करने का अधिकार कलेक्टर्स को दिया गया है। इस निर्देश पत्र की अक्षरश: अवहेलना के साथ 10-15 साल से पदस्थ माखन-सुमित को यथावत रखा गया है, जो पांच दस साल पुराने विवादित भुगतान कराने की फाइलें विशेष रुचि लेकर बढ़ा रहे हैं। यह अफसर को गुमराह करने का खेल है।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी भोपाल ने 20 जुलाई को मप्र के सभी जिले के निर्वाचन अधिकारी (कलेक्टर) को आदेशित किया है कि भारत निर्वाचन आयोग द्वारा 2 जून 23 को जारी निर्देशानुसार चुनाव 2023 में आपके जिले में जिस अधिकारी, कर्मचारी की वर्तमान पदस्थापना विगत 4 वर्षों में से यदि 3 वर्ष एक ही स्थान पर हो गए हों उनका स्थानांतरण होना चाहिए।इन पर यह नियम लागू नहीं होगा,अधिकारी कर्मचारी जिसका निर्वाचन संबंधी दायित्वों से प्रत्यक्ष संबंध नही है। इस नियम को देखते हुए माखन-सुमित का निर्वाचन शाखा के दायित्वों का प्रत्यक्ष रूप से 10-15 सालों से संबंध है
सर्कुलर स्पष्ट आगाह करता है कि ऐसे स्थानांतरण आदेश का तत्काल पालन किया जाए, उस कर्मचारी के स्थान पर अन्य की पदस्थापना की प्रतीक्षा नहीं करना है।
सन 2008 से निर्वाचन शाखा में पदस्थ माखन बाबू नियमों के विपरीत क्यों पदस्थ है इसकी मजबूरी को खुलासा प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय को करना चाहिए, इसी तरह सुमित बाबू 2013 से निर्वाचन शाखा की अनिवार्य विषय वस्तु क्यों बने हैं, इसका भी स्पष्टीकरण दिया जाना चाहिए ताकि निर्वाचन आयोग को ध्यान रहे कि भारत में कुछ ऐसे कर्मचारी भी है जिनके बिना किसी जिले में चुनाव कार्य संपादित नहीं हो सकता।
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